हरि ॐ! सात्विक जीवन में आपका स्वागत है! आज हम जिस महत्वपूर्ण विषय के बारे में जानेंगे वो है जलपान विधि. कितनी मात्रा में जल ग्रहण करना चाहिए ? जल ग्रहण करने का उचित समय क्या है ? शीतल जल और उष्ण जल, किसके लिए हितकर है और किसके लिए अहितकर ? यदि जल की मात्रा की बात करे तो अधिकांश लोगों को इस संदर्भ में मिथ्यज्ञान है की जितना अधिक जल ग्रहण करेंगे उतना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है पर इसके विपरित वास्तव में जल की उचित मात्रा तृष्णा पर निर्भर करती है और यह हर व्यक्ति के लिए अलग अलग हो सकती है, अत: एक दो या तीन litre माप कर नही अपितु स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए अपनी प्यास के अनुसार जल ग्रहण करना चाहिए, यदि बिना तृष्णा के जल ग्रहण करेंगे तो अग्निमांद्य होगा, और अग्निमंद्यता, अधिकांश व्याधियों की उत्पत्ति में मुख्य कारण है । अष्टांगहृदय कार आचार्य वागभट्ट अनुसार: अत्यम्बुपानान्नविपच्यतेऽन्न यानी अधिक जल पीने से अन्न का ठीक प्रकार से पाचन नही होता और अजीर्ण की अवस्था होती है। वही साथ में ये भी कहा है। निरम्बुपानाच्च स एव दोषा।यानी कम जल ग्रहण करना भी हानिकारक है । अतः मनुष्य को चाहिए कि उत्तम स्वास्थ्य के लिये तृष्णा अनुसार बार-बार थोड़े अन्तराल पर जल पीते रहे। उत्तम स्वास्थ्य के लिए सबसे जरूरी है ग्रहण किए आहार का पाचन, आयुर्वेद शास्त्र में भोजन ग्रहण करते समय किया हुए जल सेवन का भी विस्तृत वर्णन है। भोजन से पूर्व जल ग्रहण किया जाए तो कृशता लाता है और अग्नि को मन्द करता है । जो जल भोजन करते समय ग्रहण किया जाए वह अग्नि को प्रदिप्ता करता है, और भोजन के तुरंत बाद ग्रहण किया हुआ जल कफ दोष और स्थूलता यानी मोटापे को बढ़ाता है। स्पष्ट है की भोजन के मध्य में किया जाने वाले जलपान श्रेष्ठ है, आयुर्वेद ग्रन्थो मे इसके कारण का वर्णन ईस प्रकार स किया है : हमारी जिव्हा जिस रस का सर्वप्रथम स्पर्श करति है उसी का बोध श्रेष्ठ प्रकार से होता है , इसके पश्चात जो भी रस जिव्हा ग्रहण करती है उसका ज्ञान या बोध अपेक्षा कृत कम होता है, रस का अर्थ यहां षड रस से है मधुर अम्ल लवण, कटु, तिक्त और कषाय आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक आहार द्रव्य में इन्ही में से किसी एक रस की प्रधानता होती है और प्रत्येक रस के अपने गुण और कार्य है। अब आहार रस को ग्रहण करना जिव्हा का कार्य है पर इसका बोध करना मस्तिष्क का, जिस रस का ग्रहण किया जाता है उसी के अनुरूप मस्तिष्क प्रति क्रिया करता है और पाचन तंत्र को प्रभावित करता है, और पाचन क्रिया को बढ़ाता है । भोजन के बीच बीच में कम मात्रा में ग्रहण किया हुआ जल जिव्हा को शोधित करता है जिसे हर ग्रास में उपस्तिथ आहार रस का ज्ञान ठीक प्रकार से होता है।आधुनिक मतानुसार यह gut brain connection है यानी हमारे मस्तिष्क और पाचनतंत्र का संबंध। तृष्णा बलीयसी घोरा सद्य प्राण विनाशिनी। तस्मादेव तृष्णाऽऽतार्यं पानीयं प्राण धारणम्।। अत्यन्त प्यास बड़ी भयंकर होती है क्योंकि यह तुरन्त प्राणों का नाश कर सकती हैं। इसलिये प्राणों को धारण करने के साधन जल का अवश्य ही सेवन करते रहना चाहिए। यदि आपको प्यास लगी है तो तुरंत जल का सेवन करे, इसे अनदेखा न करे, क्युकी हो सकता है की बार बार अनदेखा करने पर dehydration की स्थिति आ जाए जो स्वास्थ के लिए हानिकरक है । स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहे और सात्विक जीवन की इस यात्रा में हमारे साथ जुड़े रहिए । हरी ॐ! सात्विक जीवन के मध्य से हमारा संदेश यहीं है कि योग के विशाल मूल्यों को समझे, सात्विक आहार का सेवन और आयुर्वेद का पालन करें जिससे स्वास्थ्य उत्तम रहे, बिना स्वास्थ्य के योग का अनुशासन संभव नहीं है। सात्विक जीवन और स्वास्थ्य संबंधित जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहिए, स्वस्थ रहे और प्रसन्न रहे । हमें आशा है के आज की इस वीडियो के माध्यम से दी गई जानकारी आप सब के लिये लाभकारी होगी। स्वस्थ रहें प्रसन्न रहें। दिव्य शक्ति की कृपा हम सब पर बनी रहे। हरी ॐ तत् सत्। श्रेय: डॉ. नेहल शर्मा आयुर्वेदिक चिकित्सक Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. #water #ayurveda #healthtips #sativkjivan #tilak #earlymorning